प्यारे पोस्टमैन चचा
सादर डाकस्ते!
इतने दिन बीत गये किन्तु न तो आप आये न ही कोई पत्र . वो भी क्या दिन थे जब आपसे नियमित भेंट होती रहती थी. खाकी वस्त्र धारण किये हुए साइकल पर सवार हो पत्रों का झोला टाँगे आप अचानक ही प्रकट हो जाते थे और दे जाते थे खट्टी-मीठी खबरों से भरा एक पत्र. आप मात्र सादा पत्र ही नहीं बल्कि साक्षात्कार पत्र व नौकरी के नियुक्ति पत्र के रूप में हमारा भाग्य भी संग ले आते थे और कभी-२ मनी ऑर्डर द्वारा हमारी जेब भी भर जाते थे. हम सब आपकी उत्सुकता से प्रतीक्षा में आगे पढ़ें...
प्रिय भॆया सुमित,
जवाब देंहटाएंपोस्टमॆन चचा के नाम लिखा आपका आत्मीयतापूर्ण पत्र पढा.आपका यह पत्र पुरानी स्मृतियों को फिर से ताजा कर गया.मुझे लता यह पत्र पोस्टमॆन चचा को नहीं मुझे लिखा गया हॆ क्योंकि मॆंने खुद पोस्टमॆन का जीवन जिया हॆ.अभी भी डाक विभाग में ही हूं.आपका यह पत्र पढकर उस समय की कई खट्टी-मिठी यादें ताजा हो गयीं.लोग पोस्टमॆन को सरकारी कर्मचारी नहीं अपने ही परिवार का सदस्य समझते थे.अपने घर-परिवार के सभी सुख-दुख पोस्टमॆंन के साथ साझा करते थे.किसी घर-परिवार के बारे में कुछ विश्वस्त जानकारी लेनी होती थी-तो उसके लिए सबसे विश्वसनीय पोस्टमॆन को समझा जाता था.अब तो मोबाईल ऒर इस ई-मेल ने कुछ ऎसी हवा चलाई हॆ कि हमारे आपसी रिश्ते आत्मीय कम मशीनी ज्यादा हो गये हॆं.बाकि डा.मनोज रस्तोगी जी ने इस संबंध में अपनी टिप्पणी में पहले ही काफी-कुछ विस्तार से लिख दिया हॆ.
पुरानी स्मृतियों को ताजा कराने के लिए-धन्यवाद!
विनोद जी आपका स्नेह तो मुझे सदैव मिलता रहेगा...ह्रदय से आभार....
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