शनिवार, अप्रैल 16, 2011

उपस्थिति (लघु कथा)

ठाकुर इज्ज़त सिंह अपने इलाके के माने हुए रईस ज़मींदार थे और इस बात का उन्हें घमंड भी था. इसलिए यूं ही कहीं जाने के लिए वह अपनी शानदार हवेली से नहीं निकलते थे.जब भी किसी रिश्तेदार के यहाँ कोई शादी अथवा अन्य कोई कार्यक्रम होता था तो अपने नौकर को अपने जूते देकर रिश्तेदार के यहाँ दावत खाने को भेज देते थे. नौकर उनके रिश्तेदारों से ठाकुर साब के जूतों को ही उनकी उपस्थिति मान लेने का आग्रह करता था.आगे पढ़ें...

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुमित भाई,
    सामाजिक संबंध तो जॆसे को तॆसा हॆ.आप किसी का सम्मान करोगे तो दूसरा अपने आप करेगा.चलो देर से ही सही,इज्जतसिंह को कुछ अक्ल तो आई.बढिया रचना.

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