सोमवार, अगस्त 22, 2011

बी.पी.एल एकाउन्टस यानी गरीबों के खाते

आजकल, भारतीय डाक विभाग के दिल्ली सर्कल में -BPL ACCOUNTS यानी गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों के खाते खोलने का अभियान विभाग ने चला रखा हॆ.प्रत्येक प्रखण्ड को इस संबंध में लक्ष्य आबंटित कर दिये गये हॆं.टीमें गठित की जा चुकी हॆं-जो घर-घर जाकर लोगों के खाते खोल रहीं हॆं.टीम सदस्यों को सख्त हिदायत दी गयी हॆ कि-वे सुबह -शाम-बी.पी.एल.कार्डधारकों से जाकर,उनकी सुविधा के अनुसार मिलें-ऒर खाते खोलकर -इस वित्तिय-वर्ष की समाप्ति तक-निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करें.टीम सदस्यों पर अधिक से अधिक संख्या में खाता खोलने का दवाब हॆ.इस दवाब के कारण-कुछ सदस्य अपने घर-परिवार के लिए पर्याप्त समय भी नहीं दे पा रहे हॆं. उनकी इसी व्यथा को हास्य-व्यंग्य शॆली में अभिव्यक्ति देती पढिये यह कविता:-




पत्नी ने-
पहली बार
हमें-शक की निगाह से देखा.
हमने पूछा-
क्या हुआ?
माई डीयर सुरेखा.
वो बोली-
देख रही हूं
पिछले कुछ दिनों से-
बदले-बदले नजर आ रहे हो
न तो ढंग से खा-पी रहे हो
ऒर न ही-
हमसे बतिया रहे हो
बात-बात पर-
झल्ला रहे हो.
सुबह-सुबह-
घर से-जल्दी निकल जाते हो
रात को भी-
देर से ही वापस आते हो
जरा मॆं भी तो सुनूं-
आजकल-
किस कलमुंही के पास जाते हो.
हमने-पत्नी को समझाया-
हे मेरी प्राण-प्रिय सुरेखा!
क्यों खींचती हो?
संबंधों के बीच-
यह ’शक’की लक्ष्मण-रेखा.
तू मान या मत मान
डाक-विभाग ने चलाया हॆ
घर-घर जाकर-
गरीबों के खाते खोलने का
विशेष अभियान.
सुबह-शाम-
उसी अभियान पर जा रहा हूं
तू कुछ ऒर न समझ-
में तो घर-घर जाकर-
सिर्फ उनके खाते खुलवा रहा हूं
यानी-अपनी ड्यूटी निभा रहा हूं.
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